1 फरवरी, 2019 का दिन भारतवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन था। इस दिन भारत सरकार ने इस फाइनेंशियल ईयर का अन्तरिम बजट पेश किया था। इसे इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि यह वर्ष 2019 के अंत में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पेश किया जाने वाला बजट है। इस बजट में जैसा कि उम्मीद की जा रही थी,लो और मीडियम इनकम क्लास के लोगों के फ़ायदे के लिए कुछ नयी टैक्स रिबेट की व्यवस्था की गई हैं।
इस बजट की सबसे अच्छी बात यह है कि अब 5 लाख रु तक की इनकम वाले व्यक्तियों को टैक्स में बड़ी छूट का प्रस्तावना शामिल किया गया है। इस छूट के अनुसार अब जिन व्यक्तियों की आय 5 लाख रु तक है उन्हें अब इनकम टैक्स नहीं देना होगा। सरकार के इस कदम का विशेषकर मीडियम इनकम वाले लोगों ने दिल से स्वागत किया है। क्या आप जानते हैं कि वास्तव में यह क्रांतिकारी दिखाई देने वाला कदम क्या है और इसका आपके इंश्योरेंस व्यवसाय पर क्या प्रभाव होगा?
प्रस्तावित बदलाव क्या हैं?
बजट 2019 में उन करदाताओं को इनकमटैक्स में पूरी तरह से छूट दे दी है जिनकी टैक्ससेबल इनकम 5 लाख रुपए तक है। इसका अर्थ है कि यदि आपके ग्राहक की कुल टैक्ससेबल इनकम 5 लाख रु तक है तब उन्हें अब इनकमटैक्स के रूप में कुछ भी नहीं देना होगा।
टैक्स लाइबिलिटी से कैसे बचें ?
यदि आपकी टैक्ससेबल इनकम या तो 5 लाख रु या इससे कम है तब आप अपनी टैक्स लाइबिलिटी से बच सकते हैं। यदि आपके कस्टमर की इनकम इस सीमा से अधिक भी है तब भी वे अपनी टैक्ससेबल इनकम को इन तरीकों से उसे 5 लाख रु तक कम कर सकते हैं:
- धारा 80 सीके अंतर्गत बताए गए निवेश और खर्चों के द्वारा अधिकतम 5 लाख रु तक की अधिकतम छूट का आवेदन किया जा सकता है।
- धारा 80 डी के अंतर्गत हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेकर उसके आधार पर छूट का आवेदन किया जा सकता है।
- 50,000 रु तक की छूट के लिए नेशनल पेंशन स्कीम में निवेश करें।
- सैलरी पाने वाले कर्मचारी 50,000 रु तक की स्टैंडर्ड छूट क्लेम कर सकते हैं।
- इनके अलावा भी विभिन्न प्रकार की कर कटौती और छूट हैं जिनके माध्यम से टैक्ससेबल इनकम को कम किया जा सकता है।
आपके व्यवसाय पर आय की इस छूट का क्या प्रभाव होगा?
टैक्स लाइबिलिटी को कम करने के लिए अपनाए जाने वाले इन दो तरीकों का आपके बिजनेस पर सीधा प्रभाव हो सकता है। आइये देखें कैसे:
धारा 80 सी में लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम
इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80 सी के अनुसार लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम के भुगतान को छूट के रूप में क्लेम किया जा सकता है। इसलिए आप इस बात का ध्यान रखें कि आपके कस्टमर ने धारा 80 सी के अनुसार पूरी तरह से छूट ले ली है। अगर उन्होनें ऐसा नहीं किया है तब आप अपने कस्टमर की जरूरत के अनुसार एक अच्छी लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी उन्हें दिलवा भी सकते हैं। इस प्रकार पॉलिसी लेने से न केवल आपके कस्टमर को इनकम में फायदा होगा बल्कि इससे वो अपनी टैक्स लाईबिलिटी भी 1.5 लाख रु की सीमा तक लाने में उन्हें मदद मिलेगी।
टर्म इंश्योरेंस प्लान इस प्रकार बनाए गए हैं कि उन्हें हर प्रकार के कस्टमर को बेचा जा सकता है। यदि आपके किसी कस्टमर के पास पहले से भी कोई टर्म प्लान है तो उस समय आप यह देखें कि क्या उसमें उन्हें पूरी तरह से कवरेज मिली हुई है। अगर ऐसा नहीं है या उनकी वर्तमान कवरेज कम है तब आप उन्हें एक नए प्लान के जरिये कवरेज बढ़ाने की सलाह दे सकते हैं। यदि आपको लगता है कि आपके कस्टमर टर्म प्लान के अलावा चाइल्ड प्लान, यूनिट लिंक्ड प्लान और पेंशन प्लान भी ले सकते हैं तो उनकी जरूरत के हिसाब से उन्हें इसका भी सुझाव दें। जैसे हो सकता है कि आपका क्लाइंट मार्किट-लिंक्ड इंवेस्टमेंट करना चाह रहा है तब आप उन्हें यूनिट-लिंक्ड प्लान का सुझाव दे सकते हैं। इसी तरह से यदि आपका कस्टमर अपने लिए एक रिटायरमेंट फंड में इन्वेस्ट करना चाहता है तब आप उसे पेंशन प्लान का सुझाव दे सकते हैं। इस प्रकार आप अपने कस्टमर को धारा 80 सी में मिलने वाली छूट के बारे में विस्तार से बताएं और एक अच्छी लाइफ इंश्योरेंस प्लान देकर अपनी बीमा सेल्स को बढ़ाएँ।
धारा 80 डी के अनुसार हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम
हेल्थ इंश्योरेंस के द्वारा आप अपने क्लाइंट के मेडिकल बिलों को कम करने का सुझाव दे सकते हैं। इसके लिए आप उन्हें इसके फ़ायदे बताएं जिसमें सबसे पहले तो टैक्स सेविंग हो जाती है और दूसरे हेल्थ कवरेज का लाभ भी मिलता है। कोई अच्छी सी हेल्थ इंश्योरेंस प्लान लेने से, चाहे वो अपने लिए हो या फैमिली के लिए हो, आपके क्लाइंट की टैक्सेबल इनकम 25,000 रु तक कम हो सकती है। यदि आपका क्लाइंट कोई सीनियर सिटिज़न है तब तो यह लिमिट 50,000 रु तक बढ़ सकती है। यदि आपके कस्टमर अपनी डिपेंडेंट माता-पिता के लिए एक अलग से हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेते हैं तब भी उन्हें दोतरफा लाभ मिलता है। एक तो इस पॉलिसी पर दिया गया प्रीमियम एडिशनल कर छूट जो अधिकतम 50,000 रु तक हो सकती है , के रूप में मिलता है और दूसरे इतनी ही राशि से आपके क्लाइंट की टैक्स लाइबिलिटी भी कम हो जाती है। इस प्रकार जब आप अपने क्लाइंट को 80डी की छूट के बारे में बताते हैं तब इससे आपके भी हेल्थ इंश्योरेंस की सेल में बढ़ावा हो सकता है।
पहले जब आपके क्लाइंट लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेते थे तब उनके आधार पर उनकी टैक्स लाइबिलिटी में कमी हो जाती थी। लेकिन इन नए परिवर्तनों के कारण तो अब यह बिलकुल ही समाप्त हो गई है। आपको बस अब इतना करना है कि क्लाइंट्स को लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से होने वाले टैक्स लाभों के बारे में बताएं और यह भी समझाएँ कि कैसे वो अपनी टैक्स लाइबिलिटी को कम ही नहीं बल्कि चाहें तो ज़ीरो भी कर सकते हैं। एक बार जब वो समझ जाएँगे, वो खुशी से स्वयं को और अपने परिवार को सुरक्षित करने के लिए लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेकर एक तरफ अपनी टैक्स लाइबिलिटी शून्य करेंगे और दूसरी ओर आपके बिजनेस को बढ़ाने में आपका सहयोग करेंगे। इस तरह से इस स्थिति में आप दोनों का ही फ़ायदा है।