म्यूचुअल फंड्स में हाल के वर्षों में जबरदस्त बदलाव हुए हैं। वे पहले के मुकाबले ज़्यादा विकसित और इन्वेस्टर फ्रेंडली बन गए हैं। सस्ती एसआईपी , नो एंट्री लोड, मिनिमम या नो एग्जिट लोड, बढ़िया रिटर्न, डायवर्सिफाइड एसेट पोर्टफोलियो आदि कुछ ऐसे सामान्य लाभ हैं, जो म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट्स अपने इन्वेस्टर्स को देते हैं। ऐसे में इस तरह के बेनिफिट्स को जोड़ने के लिए मॉडर्न डे म्यूचुअल फंड्स अपनी इन्वेस्टमेंट स्कीमों में इंश्योरेंस कवरेज को जोड़कर अपनी इन्वेस्टमेंट स्कीमों को तैयार कर रहे हैं। आइए समझते हैं कि ये इन्वेस्टमेंट + इंश्योरेंस कवरेज स्कीम्स हमें क्या ऑफर देती हैं –
इंश्योरेंस कवरेज के साथ म्युचुअल फंड
म्यूचुअल फंड हाउस नई म्यूचुअल फंड स्कीम्स लेकर आएं हैं, जो इन्वेस्टमेंट रिटर्न के साथ-साथ इंश्योरेंस कवरेज भी देती हैं। इंश्योरेंस की कवरेज इन्वेस्टर द्वारा भुगतान की जाने वाली एसआईपी की किस्त पर निर्भर करती है। सम अशुअर्ड को मंथली एसआईपी अमाउंट की कई कैलकुलेशन में समझाया गया है। उदाहरण के लिए यदि इंश्योरेंस कवरेज एसआईपी अमाउंट का 100 गुना है और एसआईपी की मासिक क़िस्त रु 1000 / प्रति महीना है, तो इन्वेस्टर को रु 1 लाख का इंश्योरेंस कवरेज मिलेगा। यह इंश्योरेंस कवरेज आपके द्वारा स्कीम को पूरी तरह या आंशिक रूप से रीडिम करने तक जारी रहेगा।
क्या ऐसी स्कीमों के तहत कवरेज एक बढ़िया चुनाव है?
हालांकि म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट के साथ इंश्योरेंस कवरेज एक अच्छे सौदे की तरह लगता है, लेकिन जब आप तस्वीर को बड़ी करके देखते हैं, तो यह स्कीम फ़ायदेमंद नहीं है। इसमें कवरेज की पेशकश की तो जाती है, लेकिन इस तरह के कवरेज के नुकसान इस प्रकार हैं-
- सम अशुअर्ड का अमाउंट बढ़िया नहीं है। एसआईपी की किस्त अधिक होने पर भी, उस अशुअर्ड अमाउंट की अपनी सीमा होती है जिसे स्कीम के तहत लिया जा सकता है। कवरेज की यह सीमा उस इंश्योरेंस अमाउंट को सीमित कर देती है जो एक संतोषजनक इंश्योरेंस कवरेज के लिए ज़रूरी होता है
- कवरेज तब तक जारी रहता है जब तक आप म्यूचुअल फंड स्कीम में इन्वेस्टमेंट करते हैं। जैसे ही आप स्कीम को पूरी तरह से रीडिम करते हैं, कवरेज बंद हो जाएगा। इसी तरह, स्कीम के पर्शियाली रीडिमशंन के वक़्त में, आपका कवरेज कम हो सकता है जिसके कारण स्कीम बहुत ही कम इंश्योरेंस कवरेज प्रदान करेगी
- ऐसी स्कीमों में अलग से राइडर लेने की भी सुविधा नहीं होती हैं। इन म्यूचुअल फंड स्कीमों के तहत बेसिक टर्म इंश्योरेंस कवरेज दिया जाता है। इस तरह के कवरेज फिक्स्ड होते हैं इसलिए इन्हें अपनी ज़रूरतों के हिसाब से बढ़ाया नहीं जा सकता है।
उपाय क्या है?
इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट दो ज़रूरी फाईनेंशियल नीड्स हैं, जो अलग-अलग इन्वेस्टमेंट के हिसाब से बेहतर होते हैं। इन दोनों जरूरतों को मिलाकर किये गए इन्वेस्टमेंट्स अक्सर आधे उपाय ही होते हैं और ऐसे हाफ सोल्यूशन दोनों में से किसी भी जरूरत के लिए संतोषजनक परिणाम नहीं देते हैं। हालांकि इंश्योरेंस कवर के साथ म्यूचुअल फंड स्कीम थोड़ा ज़्यादा फ़ायदा देती हैं, लेकिन उन्हें इंश्योरेंस का रिप्लेसमेंट नहीं माना जा सकता है। लाइफ़ इंश्योरेंस की स्कीम की ज़रूरतों के लिए अलग से प्लानिंग की जानी चाहिए। लोगों को बढ़िया टर्म इंश्योरेंस प्लांस में लंबी अवधि के लिए इन्वेस्टमेंट करना चाहिए और उनकी अनुपस्थिति में उनके परिवार की फाईनेंशियल सिक्यूरिटी के लिए एक हाई सम अशुअर्ड की प्लानिंग करनी चाहिए। एक बार यदि इंश्योरेंस की सही से प्लानिंग कर ली जाती है, तो इन म्यूचुअल फंड स्कीमों को इन्वेस्टमेंट रिटर्न के लिए चुना जा सकता है। इन स्कीमों में मिलने वाले इंश्योरेंस कवरेज को बोनस माना जाना चाहिए। और इस तरह के कवरेज को एक अच्छी इंश्योरेंस स्कीम के तहत खरीदे गए कवरेज के सप्लीमेंट की तरह देखा जाना चाहिए।
तो, अगली बार जब आप अपने ग्राहक से इंश्योरेंस कवरेज की पेशकश करने वाली म्यूचुअल फंड स्कीमों के बारे में बात करें तो, उन्हें इस तरह के कवरेज की कमियों के बारे में ज़रूर शिक्षित करें। उन्हें बताएं कि ये कवरेज एक एक्स्ट्रा बेनिफिट है और इस कारण उन्हें एक टर्म इंश्योरेंस प्लान को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए। ऐसी म्यूचुअल फंड स्कीमों में इन्वेस्टमेंट करना एक अच्छा ऑप्शन है जब आपके ग्राहकों के पास पहले से ही एक बढ़िया लाइफ़ कवरेज हो तब। लेकिन इन म्यूचुअल फंड स्कीमों के कारण टर्म प्लान को होने वाले नुकसान को हर कीमत पर बचना चाहिए। इन्वेस्टमेंट और इंश्योरेंस दो अलग-अलग प्रोडक्ट्स हैं और इसलिए, उनका इस्तेमाल भी अपनी अलग-अलग ज़रूरतों के हिसाब से किया जाना चाहिए।